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देश की सेवा में दोनों हाथ गंवाने वाले वीर सैनिक को पांच साल में नहीं मिला पुनर्वास

महुआड़ांड़ के वीर सैनिक अरुण केरकेट्टा आज प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हैं। अरुण मूल रूप से महुआड़ांड़ प्रखंड के विजयनगर के जरहाटोली के रहने वाले हैं। उन्होंने वर्ष 2007 में भारतीय थल सेना की सेकेंड बटालियन, द बिहार रेजीमेंट में हवलदार के पद पर नौकरी शुरू की। अपने सैन्य कर्तव्यों का पालन करते हुए वर्ष 2012-13 में जम्मू के सियाचिन ग्लेशियर में गंभीर हादसे में उन्होंने दोनों हाथ गंवा दिए, जिसके कारण उन्हें 100 प्रतिशत स्थायी दिव्यांग घोषित किया गया।पुनर्वास के लिए अरुण ने जिला सैनिक कल्याण पदाधिकारी, लातेहार के माध्यम से 04 दिसंबर 2020 को आवेदन किया। सैनिक कल्याण कार्यालय ने अहीरपुरवा गांव में पांच एकड़ भूमि उनके नाम करने की अनुशंसा की और अनुमंडल एवं अंचल अधिकारी द्वारा स्थलीय जांच पूरी की गई। इसके बावजूद पांच वर्षों के बाद भी यह आदेश जमीन पर लागू नहीं हो पाया। अरुण ने कहा मैं दोनों हाथों से दिव्यांग हूँ, न दफ्तरों के चक्कर लगा सकता हूँ, न मजदूरी कर सकता हूँ। फिर भी पांच साल से केवल आश्वासन मिल रहे हैं।अरुण की हौसले की दाद देनी होगी। दोनों हाथ गंवाने के बाद भी उन्होंने वर्ष 2018 में वर्ल्ड पैरालंपिक गेम्स में एथलेटिक्स खेला और 400 मीटर दौड़ में गोल्ड तथा 4×400 रिले दौड़ में सिल्वर मेडल जीते। वर्ष 2019 में उनके हौसले को देखते हुए उन्हें साउथ अफ्रीका में होने वाली वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स के लिए भी चुना गया, हालांकि कोरोना महामारी के कारण वह हिस्सा नहीं ले सके। इसी वर्ष बिहार रेजीमेंट सेंटर के तत्कालीन ब्रिगेडियर और वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें सम्मानित किया।

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