
रांची, 4 अगस्त 2025
- झारखंड आंदोलन के प्रणेता शिबू सोरेन का दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन।
- 81 वर्षीय नेता लंबे समय से बीमार थे, वेंटिलेटर पर जीवन की अंतिम लड़ाई लड़ रहे थे।
- तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और सात बार लोकसभा सदस्य रहे।
- आदिवासी समाज के अधिकारों और अस्मिता के लिए दी लंबी लड़ाई।
- राज्य सरकार ने तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की, सभी सरकारी कार्यालय रहेंगे बंद।
आदिवासी चेतना की आवाज़ अब मौन
झारखंड की राजनीति और आदिवासी स्वाभिमान का एक मजबूत स्तंभ सोमवार सुबह ढह गया, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने 81 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली।
दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, जहाँ वे पिछले कई सप्ताहों से जीवनरक्षक प्रणाली पर थे।
किडनी संबंधी जटिलताएं और हालिया ब्रेन स्ट्रोक ने उनकी हालत लगातार बिगाड़ दी थी।
संघर्ष और समर्पण की मिसाल
शिबू सोरेन के जीवन का हर अध्याय संघर्ष और जनसेवा से भरा रहा।
1970 के दशक में जब झारखंड क्षेत्र शोषण, भूख और उपेक्षा से जूझ रहा था, तब “दिशोम गुरु” ने जन-आंदोलन की अलख जगाई।
उन्होंने झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में निर्णायक भूमिका निभाई — वह सिर्फ नेता नहीं, आदिवासी अस्मिता के प्रतीक बन चुके थे।
राजनीतिक जीवन: सत्ता नहीं, सेवा का माध्यम
1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना कर उन्होंने राजनीति को जनसंघर्ष से जोड़ा।
वह तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और सात बार लोकसभा के सदस्य रहे।
कोयला मंत्री के रूप में उन्होंने संसाधनों पर स्थानीय अधिकारों की बात को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया।
विवादों में घिरे, फिर भी अडिग
जहाँ एक ओर उन्होंने लाखों लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, वहीं 1994 में एक हत्या मामले में दोषी ठहराए गए।
हालांकि बाद में उच्चतम न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया।
इन विवादों ने उनका राजनीतिक सफर कठिन बनाया, लेकिन जनता का विश्वास कभी नहीं डगमगाया।
परिवार और विरासत
शिबू सोरेन अपने पीछे पत्नी रूपी सोरेन, पुत्र हेमंत, बसंत और पुत्री अंजलि को छोड़ गए हैं।
बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन का पहले ही निधन हो चुका है।
वर्तमान में हेमंत सोरेन झामुमो की कमान संभाल रहे हैं और राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
सरकारी सम्मान और शोक की घोषणा
राज्य सरकार ने 4 से 6 अगस्त तक तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है।
4 और 5 अगस्त को सभी सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे और राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।
इस संबंध में मंत्रिमंडल सचिवालय ने सभी जिलों को आदेश जारी किया है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
“गुरुजी हमारे लिए सिर्फ एक नेता नहीं थे, वे हमारे हक और सम्मान की आवाज़ थे। उनका जाना हम सबके लिए अपूरणीय क्षति है।”
— राजू टोप्पो, समाजसेवी, गुमला
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दिशोम गुरु की राजनीतिक और सामाजिक विरासत हम सभी के लिए प्रेरणा है। आइए, मिलकर उनके दिखाए रास्ते पर चलें — यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(JharTimes प्रतिनिधि द्वारा विशेष रिपोर्ट)
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