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चैनपुर (गुमला), 24 अक्टूबर 2025

🔹 कागज़ों में इलाज, बरामदे में लाश — चैनपुर में एंबुलेंस न मिलने से घायल की मौत
🔹 रौशनपुर गांव के अलबन तिर्की को 108 सेवा न मिलने पर अस्पताल में तोड़ा दम
🔹 डॉक्टर और अफसर मौजूद थे, पर किसी ने वाहन नहीं चलाया
🔹 ग्रामीणों ने कहा — “यह हत्या है, लापरवाही नहीं”
🔹 प्रशासन ने जांच के आदेश दिए, पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं


घटना का विवरण: “इलाज के कागज़ पूरे थे, पर ज़िंदगी अधूरी रह गई”

झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की एक और भयावह तस्वीर गुरुवार को चैनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में सामने आई।
रौशनपुर गांव का अलबन तिर्की, जिस पर कथित रूप से एक विक्षिप्त व्यक्ति प्रदीप खलखो ने कोड़ी (कुदाल) से हमला किया, खून से लथपथ हालत में ग्रामीणों द्वारा चैनपुर अस्पताल लाया गया।

डॉक्टरों ने उसे प्राथमिक उपचार देने के बाद गुमला रेफर कर दिया।
लेकिन रेफरल के बाद शुरू हुई एंबुलेंस की तलाश में मौत की दौड़

करीब ढाई घंटे तक घायल व्यक्ति अस्पताल में तड़पता रहा, लेकिन उसे गुमला नहीं ले जाया जा सका।
परिजनों ने कई बार 108 एंबुलेंस को कॉल किया, हर बार वही जवाब मिला — “कोई वाहन उपलब्ध नहीं है।”

अस्पताल परिसर में वाहन खड़ा था, पर उसे चलाने की इजाज़त देने वाला कोई नहीं था।
अलबन की सांसें गिनती रहीं, और सिस्टम फाइलें पलटता रहा।


अस्पताल में अफसर थे, इंसान नहीं

घटना के वक्त एसईएमओ डॉ. धनुराज सुब्रह्मरु अस्पताल में मौजूद थे।
वे पहले से चल रहे एक अवैध वसूली जांच प्रकरण के सिलसिले में वहां आए थे।

ग्रामीणों ने उनसे एंबुलेंस की व्यवस्था की गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने जवाब दिया —

“पहले जांच पूरी होने दीजिए, बाद में देखा जाएगा।”

जब तक “कार्यवाही” की सोच बनी, अलबन ने दम तोड़ दिया।


परिजनों की पीड़ा: “गाड़ी थी, ड्राइवर था, लेकिन इंसानियत नहीं थी”

अलबन के परिवार वालों ने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए।
उनका कहना है कि —

“अस्पताल में गाड़ी थी, लेकिन किसी ने मरीज को ले जाने की इजाज़त नहीं दी।
सबने कहा ‘108 को कॉल करो’, लेकिन वहां से सिर्फ़ व्यस्तता का बहाना मिला।
क्या अब इंसान की जान की कोई कीमत नहीं रही?”

घटना के बाद से परिवार सदमे में है, और गांव में मातम पसरा हुआ है।


गांव में गुस्सा, प्रशासन में सन्नाटा

रौशनपुर और चैनपुर क्षेत्र में इस घटना के बाद आक्रोश फैल गया है।
ग्रामीणों ने इसे “सरकारी हत्या” बताया है।
लोगों का कहना है कि जब डॉक्टर और वाहन दोनों मौजूद थे, तो फिर जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना अपराध है।

प्रशासनिक अधिकारियों ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
बस, “जांच के आदेश” जारी कर दिए गए हैं — जिनका हश्र आमतौर पर फाइलों में ही होता है।


सिस्टम की सड़ांध: 108 सेवा अब ‘जीवन रेखा’ नहीं रही

झारखंड की 108 आपातकालीन सेवा, जिसे कभी “जीवन रेखा” कहा जाता था, अब लापरवाही की मिसाल बन चुकी है।
राज्यभर में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जहाँ फोन करने पर वाहन “अनुपलब्ध” बताया गया।

अलबन तिर्की की मौत इस पूरे तंत्र की मानवता-विहीनता का जीता-जागता उदाहरण बन गई।


प्रशासन की चुप्पी — सबसे बड़ा अपराध

घटना के 24 घंटे बाद भी गुमला स्वास्थ्य विभाग या जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया।
न किसी अधिकारी को निलंबित किया गया, न किसी कर्मचारी की जवाबदेही तय हुई।

स्थानीय लोग पूछ रहे हैं —

“अगर जांच ही सबका जवाब है, तो मौतों का हिसाब कौन देगा?”


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