JHARKHNAD NEWSLATEHARLOCAL NEWS

टूटी छत, टूटता बचपन: महुआडांड़ के बंदूवा गांव में खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर सिमोन बृजिया

बंदूवा गांव के 25 वर्षीय सिमोन बृजिया का कच्चा मकान पूरी तरह गिरा, खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर

बचपन में ही माता-पिता का सहारा छूटा, पढ़ाई अधूरी रह गई

रोज़ 200–250 रुपये की मजदूरी पर निर्भर जीवन

प्रधानमंत्री आवास योजना व अबुआ आवास योजना का लाभ अब तक नहीं मिला

प्रशासन के आश्वासन के बावजूद ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं

लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत अक्सी पंचायत के बंदूवा गांव का 25 वर्षीय युवक सिमोन बृजिया आज गरीबी, अकेलेपन और सरकारी उपेक्षा की मार झेल रहा है। सिमोन के पिता स्वर्गीय दीपक बृजिया का निधन तब हो गया था, जब वह महज पांच साल का था। वर्ष 2006 में उसकी मां ने दूसरा विवाह कर लिया, जिसके बाद सिमोन पूरी तरह अपने हाल पर छोड़ दिया गया।बचपन से ही जीवन की कठोर सच्चाइयों से जूझते हुए सिमोन ने खेतों में मजदूरी, ईंट-भट्ठों पर काम कर किसी तरह अपना पेट पाला। गरीबी के कारण उसकी पढ़ाई अधूरी रह गई और आज वह अनपढ़ है। वर्तमान में वह रोज़ 200 से 250 रुपये की मजदूरी कर जीवन यापन कर रहा है।

टूटा सपना, गिरी छत

सिमोन की हालत उस वक्त और बदतर हो गई, जब हाल ही में उसका कच्चा मकान पूरी तरह ढह गया। फिलहाल उसके पास रहने के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा है। वह बारिश के दिनों में तिरपाल और प्लास्टिक के सहारे रातें काटने को मजबूर है। न घर में बिजली की सुविधा है, न शौचालय, और पीने का पानी भी उसे दूर से लाना पड़ता है।

सरकारी योजनाओं से अब तक वंचित

ग्रामीणों के अनुसार, सिमोन ने प्रधानमंत्री आवास योजना और झारखंड सरकार की अबुआ आवास योजना के तहत कई बार पंचायत और प्रखंड कार्यालय में आवेदन दिया। उसका नाम सूची में दर्ज होने के बावजूद अब तक उसे पक्का मकान नसीब नहीं हो सका।

क्या कहती हैं पंचायत की मुखिया

अक्सी पंचायत की मुखिया रोजलिया टोप्पो ने बताया,
“सिमोन के लिए कई बार प्रशासन को पत्र लिखा गया है और उसकी स्थिति से अधिकारियों को अवगत कराया गया है।

प्रशासन का पक्ष

इस संबंध में महुआडांड़ प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा,
“सिमोन का नाम आवास सूची में है, जल्द उसे योजना का लाभ दिया जाएगा।”

सिमोन की पीड़ा

सिमोन बृजिया टूटे मन से कहता है,
“अब मेरे पास रहने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। अगर इस बार भी घर नहीं मिला, तो गांव छोड़कर बाहर कहीं मजदूरी करने चला जाऊंगा।”

एक युवक नहीं, एक व्यवस्था की कहानी

सिमोन की कहानी सिर्फ एक युवक की पीड़ा नहीं, बल्कि महुआडांड़ जैसे आदिवासी बहुल इलाकों की उस सच्चाई को उजागर करती है, जहां सरकारी योजनाएं कागजों में तो चलती हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत आज भी खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन कब सिमोन को उसकी सबसे बुनियादी ज़रूरत — एक सुरक्षित छत — मुहैया कराता है।


JharTimes का संदेश:
JharTimes हमेशा आपके लिए सच्ची, जिम्मेदार और ज़मीनी हकीकत से जुड़ी खबरें आप तक पहुंचाने की कोशिश करता है।

📢 झारखंड की ताज़ा खबरें अब सीधे आपके WhatsApp पर!

🔗 WhatsApp ग्रुप जॉइन करें

झारटाइम्स – आपके गाँव, आपके खबर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button