नेतरहाट में जंगल सफारी की शुरुआत, लेकिन 100 से अधिक पुराने पेड़ों की कटाई से पर्यावरण पर संकट

नेतरहाट में 20 नवंबर को जंगल सफारी का औपचारिक शुभारंभ
पलामू टाइगर रिजर्व और पर्यटन विभाग कर रहे हैं संयुक्त संचालन
पहले चरण में तीन खुली सफारी गाड़ियाँ शुरू
आयुष सेंटर निर्माण के लिए 100 से अधिक पुराने देशी पेड़ों की कटाई
पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों में भारी नाराज़गी
लातेहार जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नेतरहाट में पर्यटन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने के उद्देश्य से 20 नवंबर को जंगल सफारी की शुरुआत की गई। इस मौके पर झारखंड के पर्यटन मंत्री सुदिव्य कुमार और मनिका विधायक रामचंद्र सिंह मौजूद रहे। सफारी का संचालन पलामू टाइगर रिजर्व और पर्यटन विभाग संयुक्त रूप से कर रहे हैं। फिलहाल पहले चरण में तीन खुली सफारी गाड़ियों को पर्यटकों के लिए उतारा गया है।
समुद्र तल से लगभग 3700 फीट की ऊँचाई पर स्थित नेतरहाट, अपनी हरियाली, बादलों से ढकी पहाड़ियों और ठंडे मौसम के लिए पूरे झारखंड समेत देश के विभिन्न हिस्सों में जाना जाता है। यहाँ हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पहुँचते हैं।
पेड़ों की कटाई बनी सबसे बड़ा सवाल
जहाँ एक ओर जंगल सफारी को लेकर उत्साह है, वहीं दूसरी ओर आयुष सेंटर के भवन निर्माण के लिए 100 से अधिक पुराने पेड़ों की कटाई ने गंभीर चिंता खड़ी कर दी है। इनमें पीपल, आम, जामुन जैसे 60 से 100 वर्ष पुराने देशी वृक्ष शामिल हैं, जो इस क्षेत्र की जलवायु, जल संरक्षण और जैव विविधता के लिए अत्यंत जरूरी माने जाते हैं।
स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों की प्रतिक्रिया
स्थानीय निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर जंगल ही कम होते जाएंगे, तो जंगल सफारी का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता ने बातचीत में कहा,“सरकार एक तरफ जंगल सफारी शुरू कर रही है और दूसरी तरफ सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण की बातें खोखली लगती हैं।”
प्रशासन का पक्ष
प्रशासन का कहना है कि वन विभाग की अनुमति के बाद ही पेड़ों की कटाई की गई है, और भविष्य में प्रतिपूरक वृक्षारोपण (Compensatory Plantation) भी कराया जाएगा। हालांकि स्थानीय लोगों का सवाल है कि क्या नए पौधे 60–100 साल पुराने पेड़ों की भरपाई कर पाएंगे?
विकास बनाम पर्यावरण की बहस फिर तेज
नेतरहाट में यह मामला एक बार फिर विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन को लेकर बहस को तेज कर रहा है। पर्यटन बढ़ाने की कोशिशों के बीच यदि जंगलों को नुकसान पहुँचता है, तो इसका असर आने वाले वर्षों में मौसम, जलस्तर और वन्यजीवों पर भी पड़ सकता है।
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