महुआडांड़ : जंगल के बीच बना स्कूल: बच्चों की पढ़ाई पर ‘सड़क संकट’ का साया

महुआडांड़ (लातेहार), 9 दिसंबर 2025
- गंसा गांव के राजकीय उत्क्रमित विद्यालय तक आज तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं
- कीचड़, फिसलन और जंगली जानवरों के डर के बीच रोज़ाना स्कूल पहुँचते हैं बच्चे
- बरसात में रास्ता दलदल में बदल जाता है, उपस्थिति आधी से भी कम रह जाती है
- अभिभावकों ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन कार्रवाई नगण्य
- स्थानीय लोगों का कहना—सड़क न होने से शिक्षा के सरकारी दावे खोखले साबित
जंगल के बीच बना स्कूल: बच्चों की पढ़ाई पर ‘सड़क संकट’ का साया
लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के गंसा गांव में स्थित राजकीय उत्क्रमित विद्यालय तक जाने का रास्ता आज भी विकास की बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। घने जंगलों, पहाड़ी रास्तों और कच्ची पगडंडी के सहारे बच्चे हर रोज़ स्कूल पहुँचने को मजबूर हैं।
घटना का विवरण: कीचड़, खतरा और मजबूरी
स्कूल तक जाने वाला रास्ता पूरी तरह कच्चा और दुर्गम है। बरसात के दिनों में यह रास्ता एक खतरनाक कीचड़-भरे दलदल में बदल जाता है। जगह-जगह पानी भर जाता है, फिसलन इतनी बढ़ जाती है कि बच्चे बार-बार गिरते हैं।
कॉपी-किताबें भीग जाती हैं, कपड़े गंदे हो जाते हैं और साइकिल से स्कूल पहुँचना लगभग असंभव हो जाता है।
कई छात्र रोज़ गिरने और चोट लगने की घटनाओं से परेशान होकर स्कूल आना तक छोड़ चुके हैं। जंगल होने के कारण उन्हें जंगली जानवरों, बरसाती नालों, और फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों का डर रोज़ झेलना पड़ता है।
छात्रों और अभिभावकों की परेशानी
कई बच्चे मजबूरी में नंगे पैर स्कूल आते-जाते हैं। बरसात में तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है—उपस्थिति आधी से भी कम रह जाती है और कुछ बच्चे ड्रॉपआउट के कगार पर पहुँच चुके हैं।
एक छात्र ने JharTimes से कहा:
“साब, हम रोज़ गिरते हैं। कई बार किताब भी कीचड़ में गिर जाती है। डर लगता है, पर पढ़ना भी तो जरूरी है।”
अभिभावक भी बच्चों को भेजते समय डरे रहते हैं। उनका कहना है कि स्कूल तक सुरक्षित रास्ता न होना बच्चों की पढ़ाई को सीधे प्रभावित कर रहा है।
सरकारी दावों पर उठते सवाल
गंसा गांव के ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ‘हर बच्चे को शिक्षा’ और ‘स्कूल तक सड़क’ जैसे बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन यहां की स्थिति इन दावों की पोल खोल रही है।
“जब स्कूल पहुँचने का सुरक्षित रास्ता ही नहीं है, तो डिजिटल शिक्षा और स्मार्ट क्लास कैसी?”—एक अभिभावक का तंज।
ग्रामीणों ने बताया कि सड़क निर्माण के लिए कई बार प्रखंड और जिला प्रशासन को आवेदन दिया गया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
प्रशासनिक उदासीनता या संसाधनों की कमी?
स्थानीय लोग बार-बार मांग कर रहे हैं कि स्कूल तक कम से कम एक पक्की सड़क बनाई जाए। लेकिन वर्षों से फाइलें इधर-उधर घूमती रहीं, और बच्चे उसी पुराने खतरनाक रास्ते से गुजरते रहे।
एक ग्रामीण ने बताया:
“हमने आवेदन देकर थक गए, पर कार्रवाई सिर्फ कागज में होती है, जमीन पर नहीं।”
JharTimes का संदेश
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हम इस मुद्दे को आगे भी फॉलो-अप में उठाते रहेंगे, ताकि बच्चों को सुरक्षित रास्ता और बेहतर शिक्षा मिल सके।
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