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महुआडांड़ : जर्जर विद्यालय में पढ़ाई का संकट: औराटोली के बच्चों की जिंदगी दांव पर

महुआडांड़, 10 दिसंबर 2025

  • औराटोली का सरकारी प्राथमिक विद्यालय कई सालों से जर्जर अवस्था में
  • बच्चे असुरक्षित कमरों की वजह से खुले बरामदे में पढ़ने को मजबूर
  • बरसात में पानी टपकने, कीचड़ और जलजमाव से हालात और बिगड़ते हैं
  • दो साल से मरम्मत प्रस्ताव अधिकारियों के पास लंबित
  • अभिभावकों में भारी रोष, बड़ा हादसा होने का डर लगातार बना

महुआडांड़ प्रखंड के औराटोली गांव का सरकारी प्राथमिक विद्यालय इन दिनों अपनी बदहाली के कारण चर्चा में है। भवन की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। बावजूद इसके मरम्मत की मांग दो वर्षों से फाइलों में दबकर रह गई है।


भवन की भयावह स्थिति

विद्यालय की दीवारों में गहरी दरारें हैं, छत कमजोर हो चुकी है और रोज़ प्लास्टर झड़ता रहता है।
कक्षाएं असुरक्षित होने के कारण बच्चों को खुले बरामदे में बैठाकर पढ़ाया जा रहा है—जहां धूप, ठंड और बारिश से बचाव संभव नहीं।

बरसात में स्थिति और ज्यादा खराब हो जाती है।
कमरों से पानी टपकता है, फर्श पर कीचड़ और जलजमाव हो जाता है, जिससे बच्चों का बैठना मुश्किल हो जाता है।


मध्यान्ह भोजन भी खतरे में

विद्यालय का किचन शेड भी जर्जर हो चुका है।
कर्मचारियों के अनुसार, ऐसे ढांचे में मध्यान्ह भोजन योजना चलाना भी जोखिम भरा है।
गांव के लोग कहते हैं कि बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खाना खाते समय भी खतरे में रहते हैं।


प्राचार्या की पीड़ा: “दो साल से सिर्फ आश्वासन”

विद्यालय की प्राचार्या ने JharTimes से बातचीत में कहा:

“पिछले दो वर्षों में भवन और किचन शेड की मरम्मत के लिए कई बार प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन अब तक केवल आश्वासन मिला है। जमीनी स्तर पर एक भी ईंट तक नहीं लगी।”

उनके अनुसार विभाग की अनदेखी से बच्चे लगातार जोखिम झेल रहे हैं।


अभिभावकों का गुस्सा और चिंता

स्थानीय अभिभावक विभाग की उदासीनता से बेहद नाराज़ हैं।
उनका कहना है कि सरकार शिक्षा सुधार की बात तो करती है, पर गांव के बच्चों को आज भी जर्जर भवन में पढ़ने की मजबूरी है।

एक अभिभावक ने कहा:

“अगर कोई हादसा हो गया तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? हम बार-बार गुहार लगा रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।”


प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

गांव वालों का कहना है कि अधिकारी हर बार “जल्द कार्रवाई होगी” का आश्वासन देकर चुप हो जाते हैं।
परिवारों का डर बढ़ता जा रहा है कि कहीं किसी दिन स्कूल का ढांचा ढहकर बच्चों की जान न ले ले।


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हम इस मुद्दे को आगे भी उठाते रहेंगे ताकि बच्चों को सुरक्षित और बेहतर शिक्षा का अधिकार मिल सके।

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