महुआडांड़ :दुरुप पंचायत की जमीनी हकीकत: पोल खड़े, पर रोशनी अब भी गायब

महुआडांड़, 23 November 2025
- दुरुप पंचायत के दौना, छगरही, बसेरिया और पुरानडी में अब भी बिजली का अभाव
- गांवों में बिजली के पोल तो लगाए गए, पर न तारें पूरी, न बिजली प्रवाहित
- बच्चों की पढ़ाई, दैनिक जीवन और आपात स्थितियाँ अंधेरे के कारण गंभीर रूप से प्रभावित
- विभागीय अधिकारियों से शिकायत के बाद भी केवल “जल्द होगा” जैसा जवाब
- ग्रामीणों की मांग—वादा की गई वास्तविक बिजली हर घर तक पहुंचे
महुआडांड़ प्रखण्ड का दुरुप पंचायत आज भी विकास की मूलभूत सुविधा—बिजली—से वंचित है। झारखंड अपने 25 साल पूरे कर चुका है, लेकिन दौना, छगरही, बसेरिया और पुरानडी जैसे गांवों में अंधेरा लोगों की मजबूरी बना हुआ है।
यहां की रातें अब भी ढिबरी, टॉर्च और उम्मीदों की कमजोर लौ पर टिके हुए बीतती हैं।
पोल लगे लेकिन बिजली नहीं
गांवों में बिजली व्यवस्था के नाम पर पोल तो खड़े किए गए—कई बिल्कुल नए और चमकते हुए दिखते हैं—
पर उन पर न तो तारें पूरी तरह लगी हैं,
न कहीं बिजली का कोई संकेत।
कई स्थानों पर तार अधूरी लटकी है, तो कई जगह तारें पहुंचाई ही नहीं गईं।
एक ग्रामीण ने पीड़ा दिखाते हुए कहा—
“पोल खड़े हैं, पर रोशनी नहीं। वादा बहुत हुआ, पर घर आज भी अंधेरे में है।”
अंधेरा जो जीवन को रोक देता है
बिजली के अभाव ने गांव के जीवन को deeply प्रभावित किया है—
- बच्चों की पढ़ाई बहुत कठिन हो गई है।
- मोबाइल चार्ज करने जैसी छोटी ज़रूरत भी दूसरे गांव जाने पर निर्भर है।
- बीमारों का इलाज और रात में आपात स्थिति में मदद मिलना बेहद कठिन।
- महिलाओं और बुजुर्गों के लिए रात का हर कदम जोखिम भरा।
ग्रामीणों के लिए यह अंधेरा सिर्फ रोशनी की कमी नहीं, बल्कि सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी बाधा है।
शिकायतें की गईं, जवाब वही—“जल्द होगा”
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने कई बार विभागीय अधिकारियों से बिजली व्यवस्था दुरुस्त करने की मांग की।
पर उनका कहना है कि उन्हें केवल एक उत्तर बार-बार मिलता रहा—
“जल्द होगा।”
ग्रामीणों का कहना है कि यह “जल्द” कई सालों से सुनने को मिल रहा है, पर स्थिति आज भी वही है।
डिजिटल इंडिया के दौर में भी अंधेरा…
जबकि देश डिजिटल इंडिया, ऊर्जा क्रांति और स्मार्ट गांवों की बात करता है,
दुरुप पंचायत के गांव आज भी अंधेरे में जीवन जीने को मजबूर हैं।
स्थानीय लोगों की मांग बिल्कुल सरल है—
वह विकास, वह रोशनी जो उन्हें वादा की गई थी, अब उनके घरों तक भी पहुंचे।
एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा—
“ढिबरी की लौ नहीं, अब असली बिजली चाहिए… तभी हमारे बच्चों के सपनों में भी रोशनी आएगी।”
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हमारी कोशिश है कि ऐसे मुद्दे जिम्मेदार अधिकारियों तक पहुंचें और समाधान की दिशा में कदम बढ़े।
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