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“पुल नहीं, जंग का मैदान है ” — हर बरसात में फिसलती बच्चियां, लुढ़कता सिस्टम

महुआडांड़ (लातेहार) | 10 July 2025

  • रामपुर नदी पर बना पुल छह साल से अधूरा, हर साल बारिश में बह जाता है एप्रोच पथ
  • स्कूली बच्चियां कीचड़ में फिसलते हुए पार करती हैं रास्ता, जोखिम बन गई है पढ़ाई
  • बीमार और प्रसूताओं को खाट पर बांधकर कराया जाता है नदी पार, कई की गई जानें
  • ग्रामीणों का दावा — एक पिलर जुड़ जाए तो समाधान संभव, मगर कार्रवाई नहीं
  • महुआडांड़ SDM बोले — “अब आया संज्ञान में”, लोग बोले — “हर साल यही सुनते हैं”

परहाटोली पंचायत के रामपुर नदी पर बना पुल अब सिर्फ कंक्रीट का ढांचा नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी की गवाही है। बीते छह सालों से अधूरा पड़ा यह पुल हर मानसून में एक नया ज़ख्म लेकर आता है — एप्रोच पथ बह जाता है, स्कूली बच्चियां फिसलती हैं, मरीज जान से जूझते हैं और प्रशासन आंखें मूंद लेता है।


स्कूल जाने वाली बच्चियां रोज़ करती हैं मौत की क्रॉसिंग

बरसात में यह पुल नहीं, खतरे की सरहद बन जाता है। स्कूली बच्चियां कीचड़ में जूते हाथ में लेकर गिरते-पड़ते स्कूल पहुंचती हैं। किसी की यूनिफॉर्म गंदी, किसी के घुटने छिले — मगर न कोई देखने वाला, न सुनने वाला।

“ये रास्ता नहीं, रोज़ की लड़ाई है,” एक छात्रा कहती है — उसकी आंखों में डर है, मगर पढ़ने की जिद भी।


बीमारी में भी सहारा नहीं, खाट पर ढोए जाते हैं मरीज

अगर गांव में कोई बीमार हो जाए या कोई महिला प्रसव पीड़ा में हो, तो उसे अस्पताल ले जाना जान जोखिम में डालने जैसा है। कई बार परिजन खाट पर बांध कर मरीजों को नदी पार कराते हैं — और कई ने रास्ते में दम भी तोड़ दिया।

गांव के राम जायसवाल की बात में मायूसी साफ झलकती है:

“पुल बना तो है, मगर अधूरा। अफसर आए, देखा, फोटो लिया और चले गए। हर साल वही कहानी।”


ग्राम प्रधान बोले — “बस एक पिलर जोड़ दो, सब ठीक हो जाएगा”

ग्राम प्रधान लुइस कुजूर ने बताया कि ग्रामीण मिलकर बार-बार एप्रोच पथ बनाते हैं, लेकिन हर बारिश में सब बह जाता है।

“सरकार बस एक पिलर और जोड़ दे — इससे समस्या का स्थायी हल निकल जाएगा।”


प्रशासन का रटा-रटाया जवाब — “अब आया संज्ञान में”

जब इस गंभीर समस्या पर महुआडांड़ SDM से बात किया गया, तो जवाब आया:

“मामला आज ही संज्ञान में आया है, जल्द कार्रवाई होगी।”

छह साल बाद भी सिर्फ “संज्ञान में आया” सुनना, ग्रामीणों की पीड़ा का मज़ाक जैसा लगता है।


JharTimes की राय — पुल अधूरा नहीं, प्रशासन की सोच अधूरी है

यह सिर्फ निर्माण की गलती नहीं, यह नीतिगत असफलता और संवेदनहीन सिस्टम की निशानी है। अगर छह साल बाद भी एक पिलर जोड़ने का समाधान नहीं निकल पाया, तो सवाल सिर्फ एजेंसी पर नहीं, पूरी व्यवस्था पर उठता है।


आवाज़ उठाइए — बदलाव तभी आएगा

अगर आपके गांव-मोहल्ले में भी ऐसी समस्याएं हैं, तो चुप न रहें।
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क्योंकि जब जनता बोलेगी, तब ही तंत्र जागेगा।

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